ईसा पूर्व हज़ारों साल पहले कौरवों और पांडवों के मध्य हुए संघर्ष को आधार बना कर ऋषि वेद व्यास द्वारा उच्चारित एवं गणेश द्वारा लिखी गयी महाभारत अब भी हमें रोमांचित करती है। तमाम उलट फेरों और रहस्यमयी साजिशों एवं चरित्रों से सुसज्जित इस कहानी के मोहपाश से नए पुराने रचनाकार भी बच नहीं पाए हैं। परिणामतः इस महान ग्रंथ की मूल कहानी पर आधारित कभी कोई फ़िल्म..नाटक..कहानी या उपन्यास समय समय पर हमारे सामने अपने वजूद में आता रहा है।
इसी रोमांचक कहानी के कुछ लुप्तप्राय तथ्यों को ले कर सौरभ कुदेशिया हमारे समक्ष अपना थ्रिलर उपन्यास 'आह्वान' ले कर आए हैं। इस उपन्यास में कहानी है श्रीमंत के बेटे रोहन के रोड एक्सीडेंट में मारे जाने के बाद मिलने वाली उसकी वसीयत और वसीयत में दिए गए एक खाली बैंक लॉकर की। जिसमें एक अजीबोगरीब चित्र के अलावा और कुछ भी नहीं है। गूढ़ पहेली की तरह लिखी गयी वसीयत की गुत्थी सुलझाने के लिए उसके दोस्त जयंत, जो कि पुलिस ऑफिसर भी है, आगे आता है।
तहकीकात के दौरान गुप्त संकेतों और अजीबोगरीब लाशों के मिलने से सिंपल मर्डर मिस्ट्री जैसी नज़र आने वाली यह कहानी हर बढ़ते पेज के साथ सुलझने के बजाय मकड़जाल की भांति तब और अधिक उलझती जाती है जब एक एक कर के और भी कई हत्याएँ तथा अनहोनी घटनाएँ सर उठा..सामने आने लगती हैं।
नए और पुराने के फ्यूज़न से रची इस हॉलीवुडीय स्टाइल की कहानी में एक तरफ़ महाभारत और गीता के गूढ़ रहस्य हैं तो दूसरी तरफ़ उन्हीं गूढ़ रहस्यों से परत दर परत निकलते गुप्त संकेतों को समझने..उन्हें डिकोड करने को दिमागी कसरत एवं कवायद करते कुछ लोग।
हर सीधी..सरल सी दिखने वाली बात के पीछे भी किसी ना किसी वजह या राज़ का तार्किक ढंग से होना साबित करता है कि इस कहानी को बड़े ही संयम और धैर्य के साथ तसल्लीबख्श ढंग से धीमी आंच पर पकते पकते पकाया गया है।
तेज़ रफ़्तार से चलती हुई यह रौंगटे खड़े कर देने वाली रोचक कहानी अपने ट्विस्ट्स एण्ड टर्न्स की वजह से कभी आपको चौंकने पर मजबूर कर देती है तो कभी इस सधी हुई भाषा और कहानी के ट्रीटमेंट को देख कर लेखक की लेखन कला के मुरीद होते हुए आप दाँतों तले उंगली दबाने को आतुर हो उठते हैं।
क्या उपन्यास के अंत तक सब गुत्थियाँ सुलझ जाएँगी या फिर सुलझते सुलझते और ज़्यादा उलझ जाएँगी? यह सब तो खैर.. आपको इस वृहद उपन्यास के पहले भाग 'आह्वान' को पढ़ कर ही पता चलेगा।
शुरुआती कुछ पृष्ठों में धीमी शुरुआत के अलावा पुराने संदर्भों की व्याख्या करते कुछ पृष्ठ अतिरिक्त बौद्धिकता भरे लगे। जायज़ जगहों पर भी नुक्तों का प्रयोग ना होना..थोड़ा खला। हालांकि बाद में कहानी की बढ़ती लय और रफ़्तार के साथ इस कमी की तरफ़ ज़्यादा ध्यान नहीं जाता और पाठक किताब के अंत तक सफलतापूर्वक आराम से पहुँच जाता है। इस बात के लिए लेखक की तारीफ़ करनी होगी कि पौराणिक बातों से अनजान पाठकों के लिए, उन्होंने उन तथ्यों को अलग से संदर्भ सहित बताया है।
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