ओए!..मास्टर के लौंडे- दीप्ति मित्तल

आज के समय में भी अगर कोई किताब आपको आपके पुराने समय..पुरानी यादों..पुरानी शरारतों..पुरानी कारस्तानियों..पुरानी खुराफातों.. पुरानी बेवकूफियों की तरफ़ ले जाए तो इसमें कोई ताजुब्ब नहीं कि आप नॉस्टेल्जिया के सागर में गोते खाते हुए बरबस मुस्कुरा या फिर खुल कर खिलखिला उठें।

ऐसे ही मुस्कुराने..खिलखिलाने के अनेकों मौके ले कर लेखिका दीप्ति मित्तल जी हमारे बीच अपनी पहली किंडल किताब 'ओय!..मास्टर के लौंण्डे' ले कर आयी हैं। इस लघु उपन्यास में कहानी है दो दोस्तों, दीपेश और हरजीत की। उस दीपेश की, जिसका एक सख्तमिज़ाज़ प्रोफ़ेसर के घर में जन्म हुआ है और इस बात का उसे बहुत पछतावा है कि पढ़े लिखे मास्टर का बेटा होने की वजह से घर बाहर..हर जगह उससे पढ़ाकू होने की उम्मीदें लगाई जाती हैं जबकि उसका पढ़ाई में बिल्कुल मन नहीं लगता और इसी वजह से हर कोई उसे..'ओय मास्टर के लौण्डे कह कर चिढ़ाता है।

जहाँ एक तरफ़ पिता की सख्तमिज़ाज़ी के चलते दीपेश समेत उसकी बहन तथा माँ भी आहत रहती हैं कि उन्हें भी एक तयशुदा अनुशासित वातावरण में बिना किसी कोताही के मन मारते हुए रहना पड़ता है। वहीं दूसरी तरफ़ उसका दोस्त हरजीत एक चाय वाले का मस्ती पसन्द..मनमौजी लड़का है। जिसे हर वक्त फिल्मी गानों, बढ़िया खाने-पीने..पहनने ओढ़ने से ही फुरसत नहीं है। 

इन दोनों की दोस्ती ऐसी कि किसी का भी एक दूसरे के बग़ैर गुज़ारा नहीं। पहली बात तो उनमें आपस में नाराज़गी होती ही नहीं और अगर होती भी है तो अगले दिन तक टिक नहीं पाती। दीपेश की आदत ऐसी कि छुपाना चाह कर भी हरजीत से कोई बात ज़्यादा देर तक छुपा नहीं पाता। ऐसी लँगोटिया यारों वाली दोस्ती के बीच एक दिन हरजीत बिना कुछ बताए ग़ायब हो जाता है। तमाम तरह की जिज्ञासाओं..आशंका से भरा दीपेश अपनी लाख कोशिशों के बावजूद उसका कुछ पता नहीं लगा पाता। 

आखिर..हरजीत के साथ क्या हुआ या वो कहाँ ग़ायब हो गया? क्या वह फिर कभी लौट के आ पाता है? इस तरह के तमाम सवालों का हल जानने के लिए तो आपको बचपन की शरारतों से लैस यह मज़ेदार उपन्यास पढ़ना होगा।

हरजीत के पंजाबी परिवार से होने के बावजूत उपन्यास में पंजाबी का ग़लत उच्चारण दिखाई दिया। 

किंडल का लिंक:

"ओय! मास्टर के लौंडे (Hindi Edition)" by दीप्ति मित्तल.

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