अब भी अगर कभी तथाकथित बुद्धिजीवी साहित्यकारों द्वारा लुगदी साहित्य कह कर नकार दिए जाने वाला साहित्य हमारे सामने अपने, हार्ड (कॉपी) या फिर डिजिटल स्वरूप में आ जाता है तो पुराने दिन..पुराना समय एक बार फिर से नॉस्टेल्जिया के ज़रिए हमारे ज़हन में आ..हमें पुराने दिनों..पुरानी यादों में खो जाने को मजबूर कर देता है।
मेन स्ट्रीम के गंभीर साहित्य और उनकी बुद्धिजीविता से भरी साहित्यनुकूल भाषा की बनिस्बत इनके कंटैंट रहस्य..रोमांच एवं रोमांस से भरे हुए आम बोलचाल की भाषा से लैस होते थे। इसलिए आम जनमानस के प्रिय थे। इनकी अत्यधिक लोकप्रियता के चलते हीन भावना से लैस हो कर इन्हें तथाकथित बुद्धिजीवियों के एक वर्ग द्वारा लुगदी साहित्य कह कर महज़ इसलिए पुकारा गया कि इस तरह के उपन्यासों में छपाई की लागत को कम करने के लिए औसत से भी हल्की क्वालिटी के कागज़ का इस्तेमाल किया जाता था।
इस तरह के उपन्यासों में एक तरफ़ प्रेम..त्याग..ममता..स्नेह जैसी दिल को छू लेने वाली भावनाओं का बोलबाला था तो दूसरी तरफ़ इसमें देशभक्ति..युद्ध..फंतासी..क्राइम..और जासूसी जैसे थ्रिलर चाहने वालों की तादाद भी बेतहाशा थी।
हिंदी के तेज़ रफ़्तार..थ्रिलर..रोमांचक उपन्यासों का जिक्र जब भी कहीं होता है तो लेखक सुरेन्द्र मोहन पाठक जी की रचनाओं का एक रोचक..मनमोहक संसार हमारी नज़रों के सामने इस कदर झिलमिलाने लगता है कि हम बस उसी के हो कर रह जाते हैं। दोस्तों..आज मैं बात करने जा रहा हूँ थ्रिलर उपन्यासों के बेताज बादशाह सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के एक उपन्यास "बारह सवाल" की। इनके अब तक 300 से ज़्यादा उपन्यास आ चुके हैं।
इस उपन्यास में कहानी है कई बार का सज़ायाफ्ता ठग विकास गुप्ता की। जिसे अख़बार में छपे एक इश्तेहार से पता चलता है कि उसका मामा, जिसे उसने कभी नहीं देखा, वसीयत में उसके नाम करोड़ों रुपए की मिल्कियत छोड़ कर मर गया है। हालांकि विकास को उसके मामा की बाबत कुछ भी नहीं पता था लेकिन मामा उसके सारे काले कारनामों की ख़बर रखता था। अब चूंकि वो जानता था कि उसका भांजा ठग है तो यकीनन तेज़ दिमाग भी ज़रूर होगा। उसी के तेज़ दिमाग की परीक्षा के लिए उसने अपनी वसीयत में विकास के लिए बारह सवालों के जवाब ढूँढने की शर्त रखी है।
उन बारह सवालों को हल करने की शर्त जिनके जवाब की बाबत विकास को बिल्कुल भी इल्म नहीं है। उसे हर हाल में उन बारह सवालों का एकदम सही उत्तर ढूँढना है। अगर वो इसमें असफ़ल होता है तो सारी दौलत नेपाली मूल के तमंग बहादुर और उसकी माँ को मिल जाएगी जो मामा के पार्टनर का बेटा है और इसी दौलत के लिए उसकी जान के दुश्मन बना बैठा है।
विकास इस चुनौती को स्वीकार करता है और इस काम में अपनी साथिन शबनम की मदद लेता है। जो खुद भी एक ठग है। इस काम में इनकी मदद के लिए ठगी का बड़ा नाम मनोहर लाल उर्फ कर्नल जे.एस. चौहान आता है। खुली आँखों से भी काजल चुराने में माहिर मनोहर लाल रोज़ रात क्लब में शराब पीने का आदि है जिसे वह कभी भी अपने पैसे से खरीद कर नहीं पीता।
एक तरफ़ विकास के सामने बारह सवालों को हल करने की चुनौती है दूसरी तरफ़ बातों बातों में मनोहर लाल उर्फ कर्नल जे.एस. चौहान के बीच आपस में शर्त लग जाती है कि उन दोनों में से बड़ा ठग कौन?
बहुत से रोचक..मनोरंजक ट्विस्ट्स एण्ड टर्न्स से सुसज्जित इस कहानी को पढ़ते वक्त आप इसमें इस कदर खो जाते हैं कि आपको पता भी नहीं चलता कि कब उपन्यास अपने अंतिम पायदान पर पहुँच कर खत्म हो गया।
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