उठा पटक- प्रभुदयाल खट्टर


आजकल की फ़िल्मों या कहानियों के मुकाबले अगर 60-70 के दशक की फिल्मों या कहानियों को देखो तो उनमें एक तहज़ीब..एक अदब..एक आदर्शवादिता का फ़र्क दिखाई देता है। आजकल की फ़िल्मों अथवा नयी हिंदी के नाम पर रची जाने वाली कहानियों में जहाँ एक तरफ़ भाषा..संस्कृति एवं तहज़ीब को पूर्णरूप से तिलांजलि दी जाती दिखाई देती है तो वहीं दूसरी तरफ़ पहले की फिल्मों एवं कहानियों में एक तहज़ीब वाली लेखन परंपरा को इस हद तक बनाए रखा जाता था कि उन फिल्मों के खलनायक या वैंप किरदार भी अपनी भाषा में तमीज़ का प्रयोग किया करते थे कि अगर ऐसा न किया गया तो उन्हें दर्शकों एवं पाठकों द्वारा स्वीकार करने के बजाय पूर्ण रूप से नकार दिया जाएगा।

दोस्तों..आज मैं उसी 60-70 की तहज़ीब वाली मर्यादित भाषा शैली में लिखे गए एक ऐसे कहानी संकलन की बात करने जा रहा हूँ जिसे 'उठा पटक ' के नाम से लिखा है प्रभुदयाल खट्टर ने। बतौर स्क्रिप्ट राइटर एवं स्वर योगदान के क्षेत्र में दूरदर्शन और आल इंडिया रेडियो के लिए वर्षों तक अपनी सेवाएँ दे चुके प्रभुदयाल खट्टर जी की अब तक कई किताबें आ चुकी हैं। 

उनके इस कहानी संकलन की किसी कहानी में जहाँ एक तरफ़ सरकारी दफ़्तर में काम करने वाला विवेक जब अपनी बहन के रिश्ते की बात अपने सहकर्मी दोस्त राजेश से करता है तो वह उसकी दहेज ना लेने की शर्त पर चौंक जाता है।  क्या राजेश में कोई कमी या खोट था जिसकी वजह से वो शादी में दहेज नहीं लेना चाहता। तो वहीं दूसरी तरफ़ एक अन्य कहने में कॉलेज में एक साथ पढ़ चुके नंदू और नंदिता की शादी करने से नंदू की माँ इस वजह से इनकार कर देती है कि नंदिता एक स्त्री हो कर पुलिस की मारधाड़ वाली नौकरी करती है। 

इसी संकलन की एक अन्य कहानी में आठ साल एक दूसरे से दूर रहने के बाद एक दिन अचानक आरती को समर का पत्र मिलता है तो पुरानी यादें फ़िर से ताज़ा होने लगती हैं कि किस तरह पिता के मना करने की वजह से उसका विवाह समर से नहीं हो पाया था। अब जहाँ एक तरफ़ आरती ने अब तक शादी नहीं की..वहीं दूसरी तरफ़ अमर शिखा से शादी कर तीन बच्चों का बाप बन चुका है और अब शिखा से अलग हो आरती को फ़िर से अपनाना चाहता है। अब देखना यह है कि आरती, समर से विवाह करने के लिए तैयार होती है अथवा उस युवक से शादी करने के लिए हाँ करती है जिससे उसके पिता 8 वर्ष पहले उसकी शादी करना चाहते थे। 

इसी संकलन की एक अन्य कहानी में जहाँ कमला अपने बेटे की शादी वंदना से तो कर तो देती है मगर अपनी उम्मीद से कम दहेज पा इस हद तक बौखला  उठती है कि अपनी ननद के साथ मिल कर अपनी ही बहु को जला कर मार डालने तक की साजिश रचने से भी नहीं चूकती। तो वहीं एक अन्य कहानी में लाला हजारीलाल के यहाँ नौकरी करने वाला सोमनाथ उनकी नौकरी छोड़ रेलवे स्टेशन पर इस वजह से कुलीगिरी करने लगता है कि लाला उसे अपनी बेटियों को ज़्यादा न पढ़ाने की सलाह दे रहा था। 

इसी संकलन की एक अन्य कहानी में बंसी की मुलाकात अचानक अपने बचपन के दोस्त मेवा से होती है। जिसमें मेवा, अपने 8 वर्षीय बेटे का बंसी की 5 वर्षीया बेटी के साथ उनके बड़े होने पर विवाह करने का वचन देता है। उसी रात रसोई में अचानक लगी आग में झुलस कर बंसी की मौत हो जाती है। अब देखना ये है कि बच्चों के बड़े होने पर मेवा क्या अपने किए वादे को निभाएगा अथवा बंसी की पत्नी की कम हैसियत के बारे में सोच अपने बात से मुकर जाएगा? 

इसी संकलन की एक अन्य कहानी में अणिमा के पिता के इनकार के बाद निराश हो दिल्ली छोड़ कर जा चुका अमर अब पाँच सालों बाद वापिस लौटने पर पाता है कि पिता की ज़िद पर जबरन ब्याह दी गयी अणिमा, जो अब एक तीन वर्षीय बेटी की माँ है,  का अब अपने शक्की पति से तलाक हो चुका है। बच्ची उस वक्त सदमे से ग्रस्त हो अस्पताल पहुँच जाती है जब उसे पता चलता है कि उसके नाना, उसे अनाथ आश्रम में भेज कर उसकी मॉ यानी कि अपनी बेटी की फ़िर से कहीं और शादी करवाना चाह रहे हैं। अब देखना ये है कि क्या अमर यह सब मूक दर्शक बन कर चुपचाप देखता रहेगा अथवा..

इसी संकलन की एक अन्य कहानी आठ महीने के दांपत्य जीवन के बाद विधवा हो चुकी आनंदी के माध्यम से इस बात की तस्दीक करती नज़र आती है कि एक न एक दिन हम सभी को मोह माया के बन्धनों से मुक्त हो कर अंततः अपनी मंज़िल..अपनी मुक्ति को पाना है। तो वहीं एक अन्य कहानी दहेज लोभियों के बुरे नतीजे की बात करती नज़र आती है। 

इसी संकलन की एक अन्य कहानी में जहाँ एक तरफ़ एक साल पहले मोटरसाइकिल एक्सीडेंट में मृत्यु प्राप्त कर चुके मन्नू के नाम जब उसके दोस्त का पत्र और शादी का निमंत्रण आता है तो हैरान होती माँ भावुक हो उठती है कि उसकी शादी उसी लड़की से हो रही है जिससे वो खुद अपने बेटे मन्नू का विवाह करना चाहती थी। तो वहीं दूसरी तरफ़ एक अन्य कहानी में अविवाहित अणिमा परेशान हालात में  अपनी रूममेट सुनंदा को बताती है कि वह राजेश के बच्चे की माँ बनने वाली है और इस ख़बर से बेख़बर राजेश शहर में नहीं है। राजेश के वापिस लौट आने पर सुनंदा इसकी ख़बर राजेश को देने के लिए उसके घर जाती है तो वहाँ राजेश के बैडरूम में उसके साथ किसी अन्य युवती को कपड़े पहनते हुए पा चुपचाप वापिस लौट जाती है। क्या सुनंदा इस बात की ख़बर अणिमा को देगी अथवा अणिमा के गर्भवती होने की वजह से चुपचाप मौन धारण कर लेगी? 

इसी संकलन की एक अन्य कहानी जहाँ एक तरफ़  स्त्री..पुरुष में एक जैसे कार्य के लिए एक जैसे वेतन की माँग करती नज़र आती है तो वहीं दूसरी तरफ़ एक अन्य कहानी में एक सेल्स गर्ल महिलाओं के प्रति भद्दी टिप्पणियों करने वालों के ख़िलाफ़ अन्य युवतियों को एकजुट करती नज़र आती है। 

इसी संकलन की एक कहानी में मनीषा के गर्भवती होने पर उसकी सास अल्ट्रासाउंड करवाने का फ़रमान सुना देती है कि उन्हें लड़की नहीं बल्कि लड़का चाहिए। अब देखा ये है कि क्या मनीषा अपने ससुराल वालों की बातों में उनकी बात मान लेती है अथवा उनके विरोध के काँटों भरे रास्ते पर अपने कदम बढ़ा देती है। 

पाठकीय नज़रिए से इस संकलन की कुछ कहानियाँ मुझे थोड़ी सपाट बयानी करती हुई दिखाई दीं तो कुछ कहानियाँ अपने आप में संपूर्ण होने के बजाय महज़ दृश्य मात्र भी लगीं। जायज़ जगहों पर भी नुक्तों का इस्तेमाल ना किया जाना थोड़ा खला। 
  

पेज नंबर 47 पर लिखा दिखाई दिया कि..

'अगले दिन शाम को ड्यूटी से लौटने पर उसे समर का व्हाट्सएप मैसेज मिला।  उसने पढ़ा, लिखा था, "जन्मदिन मुबारक हो, तुम्हारा रात का खाना मेरी तरफ़ से आठ बजे आऊँगा।" ' 

इसके बाद पेज नंबर 48 यानी कि अगले पेज पर लिखा दिखाई दिया कि..

' "हैप्पी बर्थडे।" समर दरवाज़े पर फूलों का गुलदस्ता लिए खड़ा था।

"थैंक्यू।" आरती ने कहा और फूलों का गुलदस्ता समर के हाथ से ले लिया।"

" कुछ लोगे?" आरती ने पूछा। 

"नहीं, नहीं, आज बाहर चलेंगे। तुम चलोगी?" समर ने पूछा तो आरती जैसे असमंजस में पड़ गई।'

अब यहाँ ये सवाल उठता है कि जब समर ने अपने व्हाट्सएप मैसेज में आरती को जन्मदिन की मुबारकबाद देने के बाद कह ही दिया था कि..

"तुम्हारा रात का खाना मेरी तरफ़ से, आठ बजे आऊँगा।" 

तो अब रात को आठ बजे आने के बाद फ़िर से पूछने की क्या ज़रूरत थी कि..

"तुम चलोगी?"

पेज नंबर 76 की एक कहानी 'रुलाई' में पाँच सालों बाद वापिस दिल्ली लौटे अमर की मुलाकात अपने दोस्त सतीश के घर में गुड्डी नाम की एक छोटी सी बच्ची से होती है। जो कभी उसकी प्रेमिका रह चुकी अणिमा की बेटी है। अणिमा के पिता की नज़र में अमर की हैसियत उनके जैसे अमीर परिवार की न होने के कारण उन दोनों की शादी नहीं हो पायी थी। अब अणिमा का अपने पति से तलाक हो चुका है और उसके पिता गुड्डी को अनाथ आश्रम भेजने की तैयारी कर रहे हैं। इस आघात से बच्ची डिप्रेशन में आ..अस्पताल पहुँच चुकी है।

ऐसे में अमर अस्पताल पहुँच गुड्डी को गोद लेने का प्रस्ताव रखता है। जिससे खुश हो कर अणिमा अपने पिता के विरोध के बावजूद भी पेज नम्बर 76 में कहती दिखाई देती  है कि..

'अणिमा दृढ़ हो कर, बाबूजी की अवज्ञा करते हुए सतीश से बोली,  "मैं गुड्डी की माँ हूँ, आप गुड्डी को गोद ले सकते हैं। लेकिन आपको मुझे यानी गुड्डी की माँ को, एक आया की तरह गुड्डी के साथ रहने की अनुमति देनी होगी।" 

सतीश की आँखों में आँसू आ गए। वह भर्राए स्वर में बोला, "अणिमा तुम आया की तरह नहीं, मेरी पत्नी बन कर भी रह सकती हो, अगर मंज़ूर हो।"

"मंज़ूर है।' अणिमा की रुलाई फूट पड़ी और वह सतीश के गले लग कर,फफक फफक कर रोने लगी।'

उपरोक्त सभी संवाद अणिमा ने अमर से कहने थे लेकिन वह इन्हें सतीश यानी कि अपने भाई से कहती नज़र आ रही है। जो कि सही नहीं है। 


धारा प्रवाह शैली में लिखा गया यह कहानी संकलन मुझे लेखक की तरफ़ से उपहार स्वरूप मिला मगर अपने पाठकों की जानकारी के लिए मैं बताना चाहूँगा कि बढ़िया क्वालिटी में छपे इस 182 पृष्ठीय कहानी संकलन के हार्ड बाउंड संस्करण को छापा है शारदा पब्लिकेशन, दिल्ली ने और इसका मूल्य रखा गया है 300/- रुपए। आने वाले उज्ज्वल भविष्य के लिए लेखक एवं प्रकाशक को बहुत बहुत शुभकामनाएं।

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