सोच



वो दफ्तर को पहले ही लेट हो चुकी थी। हाँफते हाँफते बस में चढ़ी तो पाया कि पूरी बस ठसाठस भरी हुई है। चेहरे पे निराशा के भाव आने को ही थे कि अचानक एक सीट खाली दिखाई दी मगर ये क्या? उसकी बगल में बैठा लड़का तो उसी की तरफ देख रहा है। शर्म भी नहीं आती ऐसे लोगों को...घर में माँ-बहन, बेटियां नहीं हैं क्या? 

"खैर!..देखी जाएगी..कुछ भी फ़ालतू बोला तो यहीं के यहीं मुँह तोड़ दूँगी।" ये सोच वो उस सीट की तरफ बैठने के लिए बढ़ी। मगर ये क्या बैठने से पहले ही कंबख्त ने उसे छूने के लिए हाथ बढ़ा दिया। वो बौखला के एकदम से पलटी और ज़ोर से चटाक की आवाज़ के साथ एक करारा तमाचा उसके गाल पर जड़ दिया। 

ओह!...मगर ये क्या? जैसे ही उसकी सीट की तरफ नज़र पड़ी तो खुद ही चौंक उठी। पूरी सीट पर किसी की उलटी बिखरी पड़ी थी और आसपास खड़े लोग घिन्न से अपनी नाक पर रुमाल रखे इधर उधर देख रहे थे और व्व..वो अपाहिज लड़का अपनी आँखों में आँसू लिए गाल पर हाथ रख बस उसे देख रहा था। 


4 comments:

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

इसे पढ़ कर हँसा भी नहीं जा रहा।

रेखा श्रीवास्तव said...

हँसने का नहीं मार्मिक । वैसे अच्छी प्रस्तुति ।

Udan Tashtari said...

मार्मिक

बाल भवन जबलपुर said...

सत्य है लोग बिना समझे ऐसा इस लिये करते हैं कि उनकी सोच दैनन्दिन समाचारों और लोक व्यवहार की वजह से अटी है । कुसूरवार सार्वजिनक घटनाएं होती हैं ।

 
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