मृगतृष्णा- संपादन - नीलिमा शर्मा, डॉ. नीरज सुघांशु

जब नियति, परिस्थिति या फिर समाज अथवा परिवार द्वारा तय किए गए पति पत्नी के रिश्तों में किसी ना किसी कारणवश परेशानियां, दिक्कतें या दुश्वारियां पैदा हो अपना सर उठाने लगती हैं, तब उन रिश्तों में किसी ना किसी तीसरे का किसी ना किसी रूप में आगमन होता है भले हो वो सखा, मित्र, प्रेमी अथवा शुभचिंतक का रूप ही क्यों ना हो।

इस तरह के रिश्तों का जादुई तिलिस्म कुछ ऐसा होता है कि इन्हें कुछ समय के लिए या जीवन के सही ढंग से व्यवस्थित हो ढर्रे पर आने के बाद परिस्तिथिवश भुलाया तो जा सकता है लेकिन जड़ से समूल कभी मिटाया नहीं जा सकता। थोड़ी से तकलीफ या दुख के आते ही ये ठंडी हवा का सुखदायी झोंका बन मलहम लगाने को तुरंत आ धमकते हैं और एक मीठी मुस्कान..एक सुखद याद..एक आत्मीय गाढ़ापन लिए अनुभव को दे कर पुनः यादों के बक्से में फिर से आँखें मूंद पहले की तरह सोने का उपक्रम करने लगते हैं। 

ऐसे ही तिलस्मी रिश्तों को सहेजने का काम किया है नीलिमा शर्मा और डॉ. नीरज सुघांशु जी ने अपने संपादन में वनिका प्रकाशन के ज़रिए महिला कथाकारों की नयी किताब "मृगतृष्णा" को ला कर। इस कहानी संकलन को उन्होंने नयी व पुरानी लेखिकाओं की रचनाओं से सुसज्जित किया है। 

इस संकलन को पढ़ते वक्त कहानियों में कहीं इस तरह के रिश्ते नायिका को प्रोत्साहित कर लगभग मृतप्राय हो चुके उसके मन में फिर से नयी आस..नयी उमंग जगाते हैं तो टूटती या टूट चुकी हिम्मत में फिर से नयी ऊर्जा..नयी ऊष्मा का संचार कर उसे जीने की नयी राह...छूने को नया आसमान..नयी मंज़िल..नए आयाम दिखाते हैं। वक्त ज़रूरत...स्तिथि  परिस्तिथि के हिसाब से समय समय पर इनका लोप एवं उद्भव होता रहता है।  स्तिथियाँ जब स्थिर एवं सामान्य अथवा मन के अनुकूल हों तो गाहे बगाहे ही ऐसे लोगों की याद मन को सताती है मगर प्रतिकूल परिस्थितियों में लगभग भुला दिए गए या भुलाए जा चुके इस तरह के कुछ पुराने कहे अनकहे रिश्ते अचानक ज़हन में फिर से मीठी सिहरन बन यादों के भंवर से बाहर निकल कर मानसपटल पर पुनः उभरने लगते हैं।  

एक पाठक की हैसियत से इस कहानी संकलन को पढ़ते वक्त किसी कहानी में आपको लेखिका के बुद्धिजीवी होने का भान होता है तो कहीं अत्यधिक दार्शनिकता का पुट दिखाई देता है। कहीं किसी लेखिका के कहानी को लिखते वक्त भावनाओं से ओतप्रोत हो, उसमें खुद ही समा जाने का भान होता है तो किसी कहानी में विषय मिलने पर तुरंत उस पर जल्दबाज़ी या फिर सतही तौर पर कलम चलाई हुई भी दिखती है। किसी कहानी के सम्मोहन में आप देर तक डूबे रहते है तो किसी कहानी में उसके बस कहानी होने के असर के कारण आप उससे जल्दी ही मुक्त भी हो जाते हैं। कुल मिला कर देखें तो संकलन पठनीय है। इस किताब की कुछ कहानियों ने मुझे सबसे ज़्यादा प्रभावित किया। उनके नाम इस प्रकार हैं।

• समय रेखा- अंजू शर्मा 
• सोनमछरी- गीताश्री
• कोई खुशबू उदास करती है- नीलिमा शर्मा निविया 
• मध्य रेखा- डॉ. नीरज सुघांशु
• बूँद भर रौशनी- प्रोमिला क़ाज़ी
• तनहा ख़्वाब- सबाहत आफरीन
• रंगों का शावर- डॉ. सोनाली मिश्र
• वज़न- वंदना वाजपेयी
• बस एक कदम- ज़किया ज़ुबैरी 

कुल 200 पृष्ठों की इस किताब के पेपरबैक संस्करण का मूल्य ₹ 330/- रुपए रखा गया है जो कि मुझे थोड़ा ज़्यादा लगा। किताब की क्वालिटी की अगर बात करें तो अंदर के पृष्ठों का कागज़ बढ़िया लगा लेकिन कवर का कागज़ थोड़ा और मोटा एवं बढ़िया होना चाहिए था। एक अच्छी किताब देने के लिए दोनों संपादकों एवं सभी लेखिकाओं को बहुत बहुत बधाई। 

राजीव तनेजा

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