नीम का पेड़- राही मासूम रजा

बॉलीवुड की पुरानी फिल्मों में अक्सर बतौर डायलॉग राइटर राही मासूम रज़ा का नाम दिख जाता है। बाद में बी. आर. चोपड़ा के मेगा सीरियल "महाभारत" में भी बतौर लेखक उन्हीं का नाम दिखाई दिया। जिसमें 'समय' को सूत्रधार बना उन्होंने महाभारत की पूरी कहानी उसके माध्यम से कही थी। ठीक इसी तरह उन्होंने नीम के एक पेड़ को सूत्रधार बना अपने उपन्यास "नीम का पेड़" का सारा ताना बाना रचा। जिस पर दूरदर्शन में इसी नाम से एक सीरियल भी आया।

अंग्रेजों के वक्त की ज़मींदारी से शुरू हुए इस उपन्यास में राजनैतिक उठापटक और दाव पेचों के बीच कहानी है उत्थान और पतन की। इसमें बात है वज़ीर के प्यादा बनने तथा प्यादे के वज़ीर बनने की। जिसके माध्यम से इस बात को दर्शाया गया है कि समय कभी किसी का एक सा नहीं रहता और घूरे(कूड़ा फैंकने की जगह) के दिन भी कभी ना कभी फिरते हैं। 

इसमें बात है दो खालाज़ाद(मौसेरे) भाइयों में आपसी विवाद..नफरत और ऐंठ के बीच आपसी झगड़ों को ले कर चलती छोटी बड़ी अदालती कार्यवाहियों और उनमें झूठे गवाहों की घटती बढ़ती अहमियत की। इसमें बात है बरगलाने..फुसलाने.. सहलाने..पुचकारने और धमकाने की। 

इसमें बात है शातिराना शह पर होते तबादलों के खेल और उनके माध्यम से होती शह और मात की। इसमें बात है नारी सशक्तिकरण के ज़रिए पनपती उच्च राजनैतिक आकांक्षाओं और उनके समाधान की। इसमें बात है लालच..फरेब और धोखे से अपना उल्लू सीधा करने के सफल असफल प्रयासों की।

धाराप्रवाह शैली में बहुत ही रोचक ढंग से लिखा गया यह उपन्यास हर पल उत्सुकता बनाए रखता है। कुछ जगहों पर छोटी मोटी प्रूफ की त्रुटियों को अगर दरकिनार कर दें तो यह उपन्यास संग्रहणीय की श्रेणी में आता है। 92 पृष्ठीय इस छोटे से उपन्यास को छापा है राजकमल पेपरबैक्स ने और इसका मूल्य रखा गया है मात्र 99/- रुपए जो कि क्वालिटी एवं कंटैंट को देखते हुए बहुत ही जायज़ है। उपन्यास के रूप में इसके उम्दा रूपांतरण के लिए प्रभात रंजन जी को बहुत बहुत बधाई तथा आने वाले उज्ज्वल भविष्य के लिए अनेकों अनेक शुभ कामनाएँ।

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