कारवां ग़ुलाम रूहों का- अनमोल दुबे

आज के टेंशन या अवसाद से भरे समय में भी पुरानी बातों को याद कर चेहरा खिल उठता है। अगर किसी फ़िल्म या किताब में हम आज भी कॉलेज की धमाचौकड़ी..ऊधम मचाते यारी-दोस्ती के दृश्यों को देखते हैं। या इसी पढ़ने या देखने की प्रक्रिया के दौरान हम, मासूमियत भरे झिझक..सकुचाहट से लैस उन  रोमानी पलों से गुज़रते हैं। जिनसे कभी हम खुद भी गुज़र चुके हैं। तो नॉस्टेल्जिया की राह पर चलते हुए बरबस ही हमारे चेहरे पर एक मुस्कुराहट तो आज भी तैर ही जाती है।

आज प्रेम भरी बातें इसलिए दोस्तों..कि आज मैं महज़ तीन कहानियों के एक ऐसे संग्रह की बात करने जा रहा हूँ जो आपको फिर से उन्हीं सुहाने पलों में ले जाने के लिए अपनी तरफ़ से पूरी तैयारी किए बैठे हैं। इस कहानी संग्रह का नाम 'ग़ुलाम रूहों का कारवां ' है और इसे लिखा है अनमोल दुबे ने।

सीधी..सरल शैली में लिखी गयी इन कहानियों में कहीं कैरियर की तलाश में अपने प्रेम को बिसराता युवक है तो कहीं इसमें लापरवाही भरे फैसले की कीमत किसी को अपनी जान दे कर चुकानी पड़ती है। कहीं कोई अपने एकतरफ़ा प्यार में ही मग्न हो..डायरी के साथ अपनी सारे दुःख.. सारी खुशियाँ बाँट रहा है। कहीं इस संकलन में कोई किसी के इंतज़ार में अपना जीवन होम कर देता है। तो कोई अनजाने में ही बदनाम हो उठता है।

इस संकलन की कहानियों में कहीं विरह..वेदना और इंतज़ार में तड़पती युवती दिखाई देती है तो कहीं इसमें कैरियर की चाह में विदेश जाने को आतुर युवा प्रेम..लगाव..मोह..सबको भूल अपनी ही धुन में मग्न दिखाई देता है। कहीं इसमें बनारस के मनोरम घाटों के संक्षिप्त विवरण के दौरान यह भी पता चलता है कि बनारस एकमात्र ऐसी जगह है जहाँ गंगा दक्षिण से उत्तर की तरफ़ बहती है। इसमें कहीं गंगा की विश्वप्रसिद्ध आरती तो कहीं वहाँ के दशाश्वमेध घाट की बात है। कहीं इसमें बनारस में 84 घाटों के होने का पता चलता है। तो कहीं इसमें काशी विश्वनाथ मन्दिर और उसकी विश्वप्रसिद्ध आरती की बात है। कहीं इसमें 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक के वहाँ होने का पता चलता है। तो कहीं बेवजह परेशान रूहों के लिए प्रसिद्ध उस अस्सी घाट का जिक्र है जहाँ बैठ कर कभी गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना की थी। 
कहीं इसमें मोक्ष की प्राप्ति हेतु चौबीसों घंटे जलती चिताओं के लिए प्रसिद्ध मणिकर्णिका घाट का तो कहीं इसमें ललिता घाट के नेपाली मंदिर का जिक्र आता है। 

कहीं इसमें ओरछा के उस राम मंदिर के बारे में जानकारी मिलती है जहाँ राम को भगवान नहीं बल्कि एक राजा के रूप में पूजा जाता है। तो कहीं हरदौल के मंदिर की मान्यता के बारे में पता चलता है कि उस इलाके में होने वाली हर शादी का कार्ड वहाँ जा कर ज़रूर दिया जाता है कि हरदौल, शादी ब्याह में आने वाली तमाम रुकावटों..दिक्कतों..परेशानियों को दूर करते हुए तमाम व्यवस्था करते हैं। 

शुरुआती कुछ पन्नों में कहानी के सपाट या सतही होने सा भान हुआ मगर बाद में कहानियों से साथ पाठक थोड़ा जुड़ाव महसूस करने लगता है। अंत का पहले से भान करने वाली इस संकलन की कहानियाँ शुरुआती लेखन के हिसाब तो तो ठीक हैं लेकिन अभी और मंजाई याने के फिनिशिंग माँगती हैं। बतौर पाठक और एक लेखक के मेरा मानना है कि हम जितना अधिक पढ़ते हैं..उतना ही अधिक परिपक्व एवं समृद्ध हमारा लेखन होता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि निकट भविष्य में लेखक की कलम से बेहतरीन रचनाएँ और निकलेंगी। 

वर्तनी की त्रुटियों के अतिरिक्त इसमें संवादों के शुरू और अंत में इनवर्टेड कॉमा ("...") की कमी दिखी। पूर्णविराम,अल्पविराम,प्रश्नचिन्ह इत्यादि से ख़ासा परहेज़ नज़र आया। फ़ॉन्ट्स के बीच गैप और पेज सैटिंग में साइड मार्जिन ज़्यादा होने से लगा कि जबरन किताब की मोटाई को बढ़ाया जा रहा है। 189 पृष्ठों की इस किताब को आसानी से 160 पृष्ठों में समेटा जा सकता था। 

यूं तो यह किताब मुझे उपहारस्वरूप मिली मगर अपने पाठकों की जानकारी के लिए मैं बताना चाहूँगा कि इसके पेपरबैक संस्करण को छापा है राजमंगल प्रकाशन ने और इसका मूल्य रखा गया है 201/- रुपए। आने वाले उज्जवल भविष्य के लिए लेखक तथा प्रकाशक को अनेकों अनेक शुभकामनाएं।

3 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (08-06-2022) को चर्चा मंच      "निम्बौरी अब आयीं है नीम पर"    (चर्चा अंक- 4455)     पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'    
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कविता रावत said...

अनमोल दुबे जी को पुस्तक प्रकाशन पर हार्दिक शुभकामनाएं और पुस्तक के बारे में जानकारी प्रस्तुति हेतु आपको धन्यवाद

विमल कुमार शुक्ल 'विमल' said...

पुस्तक के लिए लेखक को शुभकामनाएं

 
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